जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 17 नवंबर 2015

ये कहाँ आ गये हम

               
    महल में बुद्ध का मन बहुत बेचैन है । तमाम बंदिशों को दरकिनार कर वे बाहर निकल पड़ते हैं । साथ में उनका सारथी चन्ना भी है । रथ को हाँकता हुआ चन्ना उन्हें बहुत दूर ले जाता है । सड़क मार्ग से होते हुए वे एक विशाल मैदान में आ पहुँचते हैं । अचानक उनकी नजर एक विचित्र प्राणी पर पड़ती है । वह हरी-हरी मखमली घासों पर लोटपोट हो रहा है । वह कभी गधे की तरह रेंकता है, कभी घोड़े की तरह हिनहिनाता है और कभी भालू का अवतार नजर आता है ।
    सारथी, क्या दुख है इसको, जो यह इस कदर बेचैन है ? बुद्ध का मुँह सारथी की ओर घूमता है ।
    दुख नहीं राजकुमार, सुख की आमद ने इसे इतना बेचैन कर दिया है कि यह लोटपोट हुआ जा रहा है । बहुत समय के बाद इसे हरियाली दिखाई दी है । आइए, इसी से जानते हैं । चन्ना के साथ वह उस प्राणी के निकट पहुँचते हैं । उन्हें देखते ही उसकी खुशी फूट पड़ती हैआओ, आओ भइया, एकाध गाल अपने घोड़े को भी मार लेने दो इन घासों पर । चारा ही चारा है चारों तरफ । इतना कहते हुए वह फिर लोटपोट होने लगता है ।
    रथ आगे बढ़ जाता है । काफी चलने के बाद एक अजीब सा महल दिखाई देता है । वहाँ दो रक्षक खड़े हैं । एक महल को पीछे से विध्वंस कर रहा है । अगला रक्षक उनकी नजरों में छिपे प्रश्न को ताड़ लेता है और जवाब देता है—यह महल कोई साधारण महल नहीं है...यह विकास का महल है ।...मैं ही इसका वास्तुकार हूँ ।
    किन्तु यह विध्वंस ? राजकुमार की तरफ से चन्ना पूछता है ।
    रक्षक हँसता है—विध्वंस होगा, तभी तो सृजन होगा । लगातार यह होगा, तभी तो विकास का महल सदा-सर्वदा नूतन दिखाई देगा ।
    बुद्ध का असमंजस और बढ़ जाता है । चन्ना रथ को आगे बढ़ाता है । कुछ दूर चलने पर ही उन्हें एक जंग लगा रथ खड़ा दिखाई देता है । रथ पर एक गधा जुता हुआ है और उसपर एक महिला सवार है । पीछे से पच्चीस लोग उसे धक्का मार रहे हैं । गधा इतना अड़ियल है कि टस से मस नहीं हो रहा है । पूछने पर महिला बताती है कि बहुत समय से रथ हमारा अँटका हुआ है । ये पच्चीस लोग आ गये हैं...उम्मीद है, अब ये आगे बढ़ेगा ।

    कितना दुख है इस संसार में । बेचारी महिला...। बुद्ध गृह-त्याग का मन बनाते हैं और चन्ना को वापस विदा करते हैं ।

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