जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

अवसरवाद का स्वर्णकाल

                    
    साधो, अवसरवाद उस वाद को कहते हैं, जिसमें बन्दा सही अवसर को ताड़कर अपना उल्लू सीधा कर ले । इसमें अवसर का उतना ही महत्व है, जितना बन्दे की उस प्रतिभा का, जो अवसर को झट पहचान ले ।...मतलब अवसरवादी इस अर्थ में अवश्य प्रतिभावान होना चाहिए । अवसरवाद हर देश-काल में रहा है । अवसरवादी ने कहाँ और कब लाभ नहीं उठाया है ? हानि उठाने वाला अवसरवादी नहीं हो सकता ।
    पहले अवसरवाद शर्म का विषय हुआ करता था । अत: अवसरवादी लोगों की आँखें बचाकर इस वाद को अमलीजामा पहनाया करता था । मगर अब यह शर्म की चीज नहीं रही । हमें शुक्रगुजार होना चाहिए उन लोगों का, जिन्होंने इसे गर्व की चीज में तब्दील कर दिया है । आप बेधड़क अवसरवादिता दिखाइए और गर्व के एवरेस्ट पर चढ़कर फख्र महसूस कीजिए ।
    अवसरवाद एक उच्च कोटि का विज्ञान है । इसमें एक व्यवस्थित योजना पर काम किया जाता है । सतत एवं व्यापक निगरानी की जाती है । लाभ के बिन्दुओं को एकत्रित किया जाता है और हानि पहुँचाने वाले तत्वों को डस्टबिन में डाल दिया जाता है, ताकि हानि की गुंजाइश न रहे । सारे लाभ के तत्वों से बना यह यौगिक ही अवसरवाद होता है । यह एटम बम की तरह धमाका भी कर सकता है, पर अपने साधक को यह तनिक भी नुकसान नहीं पहुँचाता ।
    विद्वान लोग इसे कला भी मानते हैं । कला में सृजन का तत्व निहित होता है, इसमें भी है । जिस तरह एक कलाकार पत्थर का विध्वंस करके प्रतिमा का सृजन कर देता है, उसी तरह अवसरवादी भी स्वहित की प्रतिमा का सृजन करता है । अब यह अलग बात है कि काट-छाँट के रूप में यदि समाज व देशहित भी निकालना पड़े, तो उसे संकोच नहीं होता । 
    इस वाद को साधना इतना आसान भी नहीं है । साधक में बौद्धिकता के कीटाणु मौजूद होने चाहिएं तथा टाइमिंग में उसे महारत हासिल हो । टाइमिंग बहुत बड़ी चीज होती है । सटीक समय को जानने वाला ही सच्चा अवसरवादी होता है ।
    अवसरवाद कभी बड़े पैमाने पर संगठित नहीं हुआ । उसके पीछे किसी संगठन का हाथ नहीं रहा, पर आज वह संगठित है । उसके पीछे कई संगठनों का हाथ स्पष्ट दिखाई दे रहा है । एक अवसरवादी दूसरे अवसरवादी को फूटी आँखों नहीं सुहाता, किन्तु आज ये गलबहियाँ किए खड़े हैं । इनकी एकजुटता अभूतपूर्व है । ये सारी चीजें इस बात का सबूत हैं कि अवसरवाद का स्वर्णकाल या तो आ चुका है या सन्निकट है ।     


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