जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

उधर अच्छे दिन , इधर बुरे दिन

          
      काम करने वाला बाबू नहीं हो सकता । बाबू तो उसे कहते हैं जो काम नहीं करता । आप पूछ सकते हैं कि काम नहीं करता, तो खाता कैसे है । यही तो इस जीव की खूबी है जनाब कि काम नहीं करता तो ही खाता है । खिलाने वाले इसे काम न करने पर ही खिलाते हैं । बहरहाल बाबू की इन सच्चाईयों के बीच एक सच्चाई यह भी आ रही है कि दिल्ली वाले बाबू काम करना चाहते हैं । उनमें काम करने के लिए होड़ लगी हुई है ।
   यह सच्चाई हमारे दफ्तर तक आ पहुँची है । बाबू हताशा–निराशा के भँवर में डूब–उतरा रहे हैं । बड़े बाबू का तो हाल ही बेहाल है । उन्हें लगने लगा है कि खतरा एकदम सिर पर आन बैठा है । नतीजे दिखाई भी देने लगे हैं । पहले फाइल जितनी भारी होती थी, काम उतनी ही तेजी से सरकता था, पर अब हल्की ही सरकानी पड़ रही है । फाइल स्वामी बाद में भारी करने की मौन स्वीकृतियां देने लगे हैं । मौन स्वीकृति का क्या, भला इसकी गवाही देने कोई आया है आज तक !
    आज दोपहर हो आई है और बड़े बाबू का गला सूखा हुआ है । इस समय तक तो मिनरल वाटर और स्प्राइट से कितनी बार गला तर हो जाया करता  था । मगही पान के बड़े–बड़े बीड़े मुँह में ठसाठस रहते थे अलग से । उनकी दशा देख चपरासी दफ्तर का ही पानी रख गया है गिलास में । शाम का समय अभी से उनके दिमाग में उतरने लगा है । कैसे कर पाएंगे सामना घर में बीवी का । उसकी आवाज में मिर्ची की गन्ध घुलने लगी है ।
    उधर एक और सच्चाई झाँकने लगी है । ज्योतिषियों की चाँदी हो आई है । उनके यहाँ बाबुओं की ये लम्बी कतारें लगी हुई हैं । ग्रह–दोष निवारण के लिए सभी पण्डित जी के शरणागत हैं । ग्रह–नक्षत्र बोलने लगे हैं । शनि अत्यन्त वक्री होकर अमंगल भाव के साथ बाबुओं के मंगल स्थान में आ बैठा है । पाँच साल तक उसके हिलने–डुलने की कोई संभावना नहीं है । जातकों को सलाह है कि सवा ग्यारह रत्ती का कठोर काम का पत्थर लोहे की अंगूठी में जड़कर धारण करें । माया की तरफ कदापि नजर न डालें । ऐसा करना उनके लिए भयंकर अमंगलकारी होगा ।
   आने वाले अच्छे दिनों में बाबुओं की ऐसी दुरावस्था ! कोई इस सच्चाई पर भी तो दया–दृष्टि डाले ।

                                                 

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