जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शुक्रवार, 27 मई 2016

सादा बनाम रंगीन पानी और सरकारी वरदहस्त


           
   इधर का इलाका एकदम चकाचक है । किसी और इलाके में सूखे का कोप भले ही बरस रहा हो, इधर तो होप-ही-होप है । प्रकृति तनिक रूठती है, तो नेतागण इतने घड़ियाली आँसू गिराते हैं कि भरपाई हो जाती है । उनकी संवेदनशीलता पानी के लिए बहुत अधिक है । पानी की उपलब्धता दो तरह की है इधर । सादा पानी, जो अब ज्यादातर हैंडपंपों से ही निकलता है तथा रंगीन पानी, जो गन्नों को निचोड़कर फैक्टरियों में बनाया जाता है । सादा पानी कम हो, तो चलता है, पर रंगीन पानी के प्रवाह में बाधा नेताओं की संवेदना को निचोड़ने लगती है ।
   किसी भी जगह हाट-बाजार का विकास करना हो, तो सबसे पहले एक रंगीन पानी की दुकान खोल दीजिए । देखते-देखते चना-चबेना, चाट, पकौड़े-समोसे, भेलपूरी-पानीपूरी तथा अनगिनत प्रकार की नमकीनों की दुकानें खुल जाएंगी । इस बढ़ते सह-अस्तित्व व भाईचारे को और बढ़ाने के लिए बगल में सरकार तुरंत एक पुलिस चौकी को ला बिठाएगी । इस तरह बाजार के बनने में देर नहीं लगती । सादा पानी ऐसा कमाल करने में सर्वथा अक्षम है । चूँकि इधर बाजारों की संख्या कमाल की है, अतः रंगीन पानी की आपूर्ति भी कमाल की है ।
   आपूर्ति की अधिकता निर्यात के रास्ते खोलती है । प्राकृतिक या कृत्रिम प्रयास से सूखे इलाके व्यापार की असीम संभावनाओं को जन्म देते हैं । बौद्ध-इलाका अहिंसा के लिए रंगीन पानी पर रोक लगाता है और इधर का अ-बौद्ध इलाका उनके प्रयास की प्रशंसा में उधर जमकर पानी भेजता है । रंगीन पानी पर कोई आँच न आवे, इसके लिए सरकार एक टांग पर खड़ी रहती है । आखिर गन्ना-किसानों का महाकल्याण जो ठहरा ! किसानों के हित में रंगीन पानी का निर्माण होना ही चाहिए ।
   सरकार ने फैसला किया है कि रंगीन पानी की आपूर्ति अबाध गति से बनी रहेगी । अपने नाम के अनुरूप उत्तमता को बनाए रखने के लिए पानी तो होना ही चाहिए । रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून-इसलिए पानी को बनाकर रखा जा रहा है । वैसे भी अपना ही एक हिस्सा भयंकर सूखे की चपेट में है । सादा न सही, रंगीन पानी तो उन्हें उपलब्ध होगा ।

   पता नहीं क्यों, कुछ नकचढ़े लोग कह रहे हैं कि सरकार की आँखों का पानी कम हो रहा है । जबकि हकीकत यह है कि घड़ियाली आँसुओं से सारे सूखे पोखर-तालाब लबालब भरे पड़े हैं । शायद इसकी एक वजह यह हो सकती है कि वह अब आजाद नहीं रहा । आँखों में कम पानी दिखाई दे रहा है, क्योंकि वह तेजी से बोतलों में कैद होता जा रहा है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

लोकप्रिय पोस्ट